तीन सहेलियों की कहानी
तीन सहेलियों की कहानी
यह कहानी सत्य घटना पर अधारित नहीं है, यह एक काल्पनिक कहानी है। कृपया ईस कहानी का नकल न करें।।
यह कहानी तीन सहेलियों की है जो हमेशा साथ रहती है
कहानी से पहले मैं तीनों का परिचय बताती हूं। मैं यानि की मोनल गुप्ता, जो कि बहुत ही चुलबुली और मस्तीखोर है, और दिखने में बहुत ही सुन्दर रंग सांवला पर फेसकट कतई बवाल। दुसरी है चंदा गुप्ता ये थोड़ी शांत रहने वाली और समझदार भी रंग गोरा दिखने में ठीक ठाक ।
तीसरी सुधा गुप्ता ये थोड़ी समझदार भी और थोड़ी मस्तीखोर भी रंग भी गोरा और दिखने में सुन्दर। शहर, विदया सागर, काल्पनिक नाम......
आगे की कहानी मैं बताऊंगी यानि कि मैं मोनल
सांई बाबा संस्कार स्कुल हिन्दी मिडियम, विदया सागर।
यह बात है 2011 कि जब मैं आठवीं कक्षा में थी, जुलाई का महीना और स्कुल का पहला दिन, आप लोग सोच रहे होंगे की स्कुल तो जुन में खुलते हैं, नहीं उस टाइम ऐसा नहीं था 2011 में यह नियम लागू नहीं किया गया था, 1 जुलाई को जब स्कुल गयी मेरा नया एडमिशन हुआ था मैं वहाँ किसी को नहीं जानती थी, सब लडके-लडकियां आपस में बात कर रहे थे सब अपने अपने गर्मी छुटटीयों के बारे में बता रहें थे एक दुसरे को, और मैं सबसे पिछे एक बैंच में बैठकर यहाँ-वहा देख रही थी, सभी लोग अपने में ही मस्त थे, मैं अकेले बैठकर खुद को कोस रही थी कि क्यों यहाँ मैने एडमिशन लिया यहाँ तो मेरे कोई दोस्त भी नहीं है कोई मझसे बात भी नहीं कर रहा है, मैं बैठकर यही सोच रही थी कि अचानक किसी ने मुझे आवाज दिया।
मैने सिर उठाकर ऊपर देखा तो एक लड़की जिसकी हाईट 4 फुट 10 इंच होगा। रंग गोरा, सामान्य चेहरा, कोई मेकअप नहीं बस होठ में
लिपबाम लगाई थी।
। वह मुस्कुराते हुए मझसे बोली क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ। मैंन । मैंने बोला बिल्कुल बैठ सकती हो।
मैने उससे उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम बताया चंदा फिर मैंने खुद ही अपना नाम बता दिया उसके मेरा नाम पूछने से पहले, तो चंदा भी मुस्कुरा दी। फिर चंदा तो चुप हो गयी पर मैं चुप रहु ऐसा तो हो ही नहीं सकता अगर मैं चुप रहु तो मेरा सिरखने लगता है। मेने उससे पूछा और बताओ तुम्हारे घर में कौन-कौन है। तो चंदा ने बताया मेरी मम्मी मैं और मेरे भईया, मैंने पूछा तुम्हारे पापा
तो वह बोली मेरे पापा हमलोग के साथ नहीं रहते वह हमसब को छोड़कर अपने घर में रहते हैं।
तो मैने कुछ नहीं बोला तो वह मुझसे पुछी
और तुम बताओ तुम्हारे घर में कौन-कौन है। मैंने बताया मेरे घर में मेरे पापा मेरे मम्मी मेरे दो भाई है। मेरे पापा बैंक में क्लर्क है। और मेरी मम्मी
हाउसवाइफ है। हम लोग बात कर ही रहे थे कि क्लास में क्लास टीचर आगई। सब बच्चे शांत होकर अपने-अपने जगह पर बैठ गए। सबका अटेडेन्स होने लगा, तभी एक लड़की की आवाज आई, मे आई कमिंग मेम जी मेम ने उसे अन्दर आने दिया। वो हमारे पास आकर बैठ गई।
उसने धीरे से बोला हाय मेरा नाम सुधा है, और आज से में भी तुम लोगों के साथ ही बैठुगीं, चंदा मुस्कुरा दी, मैं बोली बिल्कुल हमारे साथ बैठ सकती हो, और हम तीनों पीछे बैठ कर मस्ती करेंगे। तभी मेम की आवाज आई, तुम तीनों क्या बात कर रहे हो क्लास टाइम में, तो मोनल बेख्याली में बोली क्यों बताये हम क्या बात कर रहे हैं, चंदा ने झट से मोनल को चुटी काटा तो मोनल बोली कु.. कु... कुछ नहीं मैम बस एक - दुसरे का नाम पूछ रहे थे, तो मेम बोली अभी से कोई किसी से बात नहीं करेगा जिसको भी बात करना है क्लास से बाहर जाकर बात करें, उसके बाद मेम पढाने लगी और पढाई में ध्यान देने लगे, मोनल भले ही मस्तीखोर है पर पढाई के मामले में बिल्कुल सिरियस रहती थी। लगातार
दो क्लास होने के बाद ब्रेक हुआ सब क्लास से बाहर निकलने लगे, मोनल, सुधा, चंदा भी बाहर निकल ही रहे थे कि एक लड़की की आवाज आई पीछे से
सुधा... वो तीनों पिछे पलट गई, वो लड़की जिसका नाम अंजु था, उसने बोला, क्या बात है सुधा नये दोस्त बना लिया तुमने सुधा कुछ बोलती की फिर से वो लड़की यानि की अंजु ने बोला, अच्छा हुआ की तुमने अपनी ही जैसे लडकियों को दोस्त बनाया है, न तो तुम्हें ढंग से हिन्दी पढने आता और न ही तुम मेरे जैसे अमीर हो तुम तो हमारे ग्रुप में रहने लायक भी नहीं हो, वो तो मैं सिर्फ अपने मम्मी पापा के वजह से कुछ नहीं बोलती थी, अच्छा हुआ जो तुम खुद ही हमारे ग्रुप से निकल गई, मोनल से रहा नहीं गया तो उसने अंजु से बोली, तुम्हें कोई अधिकार नहीं है। कि तुम सुधा से ऐसे बात करो, उसका हमारे सामने बेजती करो, और उसे ढंग से हिन्दी पढने नहीं आता तो क्या तुमने कभी उसे पढना सिखाया, नहीं न तो फिर उससे ऐसे बात नहीं कर सकतीं तुम समझी, और क्या बोली तुम ये तुम्हारे जैसे अमीर नही है, अरे अमीर नही है तो क्या हुआ तुम्हारे जैसे घमंडी भी नहीं है, तभी वहाँ पर 6-7 लडके लडकियां जो कि अंजु का ग्रुप था, उस ग्रुप में से एक लड़का बोला क्या कर रही तुम और सुधा यहा पर तो अंजु बोली अब सुधा हमलोग की दोस्त नहीं है, उसने नया दोस्त बना लिया, वो लडका जिसका नाम शुभम था उसने सुधा की तरफ देखा, और मुस्कुराते हुए बोला कोई बात नहीं अगर उसने नये दोस्त बना लिया तो सुधा फिर भी मेरी दोस्त रहगी, क्यों सुधा सही बोला न में। सुधा बोली हां बिलकुल हम दोस्त रहेगें जैसे पहले थे। अंजु बोली तुम क्या बोल रहे हो शुभम वो अब हमारी दोस्त नहीं है तो फिर क्यों तुम उसके दोस्त बने रहना चाहते हो, तो शुभम बोला बस मैंने बोल दिया तो बोल दिया सुधा मेरी दोस्त थी और रहेगी। अंजु गुस्से से हम तीनों को गुरते हुए चली गई। फिर शुभम भी अपने दोस्तों के साथ चला गया। मोनल ने सुधा की तरफ देखकर बोली कौन है ये नकचढ़ी तो
उसने बताया कि........
आगे पढ़ने के लिए कहानी के साथ बने रहीए।
"कहानी पढकर कैसा लगा प्लीज कमेंट में जरूर बताईएगा....
(२) तीन सहेलियों की कहानी
अंजू ने सुधा को क्यों मारा टक्कर
क्या तीन सहेली अलग हो जाएंगे
मोनल सुधा के तरफ देखकर बोली कौन है ये नकचढ़ी तो सुधा बोली मेरी मामा- मामी की बेटी है, हम लोग मिडिल क्लास वाले है, और मेरे मामा-मामी हम लोग से अमीर है, इसलिए अंजु अपनी अमीरी हर किसी को दिखाती रहती है, गरीबों को तो वो कुछ भी नहीं समझती। वो तीनों बात कर ही रहे थे कि घंटी बज गई क्लास जाने के लिए सभी अपने-अपने क्लास में चले गये।
4 बजे जब छुट्टी हुई तो सभी अपने क्लास से बाहर ग्राऊन्ड में आ गए, सुधा, चंदा, मोनल तीनों साथ में आ रहे थे उसी टाइम अंजु जानबूझकर सुधा को टक्कर मारते हुए आगे बढ़ जाती है
तो मोनल चिल्ला कर बोलती है, ये नकचढ़ी तुझे दिखाई नहीं देता क्या आंख से अंची हो क्या? अंजु वापस आकर उन तीनों के पास खड़ी हो जाती है, और मोनल से बोलती है, मैने इसको टक्कर मारा है तुम्हें क्यों दर्द हो रहा, मोनल बोली ही मुझे दर्द हो रहा है क्योंकि ये मेरी दोस्त है समझी तुम आज के बाद से अगर तुमने इसको परेशान किया तो फिर मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। तभी चंदा भी बोलती है और अगर तुमने इसकी सबके सामने बेजती की या फिर और कुछ किया तो चंदा,
मोनल दोनों एकसाथ बोले, हम दोनों से बुरा कोई नहीं होगा। अंजु दोनो के तरफ बारी-बारी से देखती है, वो आगे बढ़ती है और जैसे ही सुधा को गुस्से में धक्का देने वाली रहती है कि मोनल जल्दी से आगे बढ़ कर अंजु को धक्का दे देती है।
अंजु की आंखों में आंसू आ जाते वो भरी आँखों से इधर-उधर देखती तो सब उसी को देख रहे थे, वो उठ कर खड़ी होती है और सुधा से बोलती है, आज घर जाकर तुम्हारी क्लास लगवाती हूं फुफा जी से बोलकर, और तुम दोनों, तुम दोनों को तो में देख लुंगी। तो मीनल भी बोलती है हमलोग भी तुमको देख लेगेंगे। अंजु गुस्से से घर चली जाती है।
सुथा, चंदा और मोनल से बोलती है आज तक किसी ने मेरे लिए ऐसे नहीं लड़ा, और किसी ने मेरे लिए किसी को ऐसे मुहतोड़ नहीं जवाब दिया, थैंक्स तुम दोनों को, मोनल बोलती है जाणी हम, हम है इसलिए
तो मेरे मम्मी पापा ने मेरा नाम मोनल रखा है, अब तु ऐसे देवदास की तरह आंखों में आंसू लेकर थैंक्स मत बोल यार जस्ट चिल एण्ड रिलेक्स यार दोस्ती नो थैंक्स नो सौरी ओके। चंदा, सुधा एक साथ बोलते है ओके बोस........
तीनों ही फिर खिलखिलाकर हंस देती है, चंदा हाथ आगे करके बोलती है बेस्टफ्रेन्डस तो मोनल और सुधा भी चंदा के हाथ के उपर हाथ रख कर तीनों एक साथ में बोलती है बेस्टफ्रेन्डस। तीनों एक एक दुसरे दुसरे को को देख देख कर कर मुस्कुरा मुस्कुरा के देती है। और तीनों एक दुसरे को बाय बोलकर घर के लिए निकल
जाती है।
मोनल घर पहुंचती तो देखती है कि उसकी मम्मी हाल में बैठकर टी.वी. देख रही थी। मोनल अपनी मम्मी को देखकर बोलती है मम्मी..... उसकी मम्मी सरिता जी अपनी बेटी कि तरफ देखकर बोलती है अरे बेटा तुम आ गई, तुम कपड़ा बदलो तब तक मैं खाना लगा देती हूं। मोनल बोली ओके मदर इन्डिया सर झुका कर कर बोलती है, सरिता जी बोली कपड़ा बदलने के लिए बोला
नौटंकी करने के लिए नहीं नौटंकी देवी, मोनल हंसते हुए सीढ़ी चढ़कर अपने रूम में चली जाती है। सरिता जी मुस्कुराते हुए बोलती है बिल्कुल पागल है मेरी बेटी और फिर किचन में जाकर खाना निकालने लगती है।
उधर चंदा जब घर पहुंचती है, तो उसके भईया बोलते है, आ गई मेरी लाडली बहन चल मुंह हाथ धो ले तब तक मैं तेरे लिए खाना लगा रहां हूं टेबल पर, जब चंदा मुह हाथ थोकर आई तो भईया खाना लगा चुके थे टेबल पर चंदा पूछी भईया माँ कहा है तो भईया बोले बाल वाली चाची के यहाँ गई है उनको कुछ काम था। चंदा ही में मुंडी दिला दी। भईया पूछे स्कुल का पहला दिन कैसा रहा तो चंदा ने आज जो भी हुआ सब कुछ बता दी। उसके भईया बोले वाह मोनल तो बहुत हिम्मत वाली लड़की है। इसलिए तो बोलता हूँ। छुटकी तुझे भी कि गलत के खिलाफ बोला कर पर तु तो हमेशा शांत ही रहती है। पर कोई नहीं अब स्कुल का मुझे टेंशन नहीं तो चंदा उनके तरफ देखती तो भईया बोलते तेरी दोस्त है, न स्कुल मे वो सम्भाल लेगी तुझे, बाहर तो मैं हूँ ही मेरी छुटकी के लिए। तब तक यशोदा जी भी आ जाती है यानि कि चंदा की मां, यशोदा बोलती क्या बात हो रही है दोनों भाई बहन में तो चंदा बोलती है कुछ नहीं मां बस स्कुल के बारे में भईया पूछ रहे थे, यशोदा जी बोलती है अच्छा ठीक है अब दोनों थोड़ा आराम कर लो, मुझे और तुम्हारे भईया को मार्केट जाना
तुम घर पर रहकर पढाई करना ठीक है। चंदा बोली ठीक है मां और फिर अपने कमरे में चली जाती है। उधर सुधा खाना खा कर शाम को अपने पापा का इंतजार करते हुए हॉल में इधर उधर घुम रही थी, उसकी मम्मी बोलती है, क्या बात है बेटा बता
मुझे, जब से स्कुल से आई है तब से बस पापा कब आयेगें, पापा कब आयेगें का रट लगाये बैठी हो। सुधा बोलती है जब पापा आयेगें तभी में बताउंगी, डोरबेल बजी सुथा दौडकर दरवाजा खोलने गई, दरवाजा खोली तो सामने उसके पापा, उसके
मामा और साथ में अंजु भी थी।
सब हॉल बैठकर चाय पी रहे थे, तो अंजु बोली पापा जो बात करने आए हैं वो बात तो करिए, फुफाजी... (अंजु ने रोनी सुरत बना कर बोला) भने आपको बताया न अंजु ने आज मेरे साथ क्या-क्या किया, मुझे धक्का देकर गिराया और मेरे बाल भी नोंचे। सुधा हैरान होकर अंजु को देख रही थी, सुधा जानती थी कि अंजु उसको पसंद नहीं करती है और न ही अपनी बहन मानती क्योंकि सुधा मिडिल क्लास फेमिली से उसके रहन-सहन सिम्पल है वो ज्यादा दिखावा नहीं करती और पढने थोड़ी कमजोर है इसलिए अंजु सुधा को पसंद नहीं करती थी, पर अंजु उसके
ऊपर झुठा इल्जाम लगा रही थी, जो सुधा ने किया ही नहीं था। वो बोलने ही वाली थी तभी.
आगे की कहानी पढने के लिए कहानी के साथ बने रहिये
और प्लीज बताईये कि आपको यह कहानी कैसा लग रहा है पढ़कर और मुझे कमेंट में बताए समीक्षा दे।
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